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शीतयुद्ध के दौरान भारत-अमेरिका-सोवियत संघ की विदेश नीती || India-US-Soviet foreign policy in hindi

शीतयुद्ध के दौरान भारत की विदेश नीती


शीतयुद्ध के दौरान भारत की विदेश नीती :- 

शीतयुद्ध से अभिप्राय दो राज्यों अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच उन कटु सम्बन्धों के इतिहास से है, जो तनाव, भय, ईष्य पर आधारित था। इसके अन्तर्गत दोनों गुट एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए तथा अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए प्रादेशिक संगठनों के गठन, सैन्य गठबन्धन, आर्थिक सहायता, प्रचार, सैन्य हस्तक्षेप जैसी बातों का सहारा लेते हैं। 

 डॉ० एम० एस० राजन के अनुसार शीतयुद्ध :- 

 शीतयुद्ध शक्ति संघर्ष की राजनीति का मिला-जुला परिणाम है, दो विरोधी विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है।

दो प्रकार की परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है, विरोधी चिन्तन पद्धतियों और संघर्षपूर्ण राष्ट्रीय हितों की अभिव्यक्ति है जिनका अनुपात समय और परिस्थितियों के अनुसार एक-दूसरे के पूरक के रूप में बदलता रहता है।

शीतयुद्ध के दौरान भारत-अमरीकी विदेश नीती:- 

शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका की विदेश नीती
शीतयुद्ध-के-दौरान-अमेरिका-की-विदेश-नीती



भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् भारत तथा अमेरिका के सम्बन्धों में उतार-चढ़ाव आता रहा है। देखा जाए तो भारत-अमरीको सम्बन्धों की नींव नेहरू युग में पड़ी। सन् 1949 ई० में पं० नेहरू ने अमेरिका की यात्रा की। वहाँ से लौटने पर उन्होंने कहा, “अमेरिका ने मेरा स्वागत किया, परन्तु वह मुझस कृतज्ञता तथा सद्भाव से अधिक कुछ और चाहता था और वह मैं उसे दे नहीं सकता था। उसकी स्वार्थपूर्ण सहानुभूति का जादू भारत से अपनी नीतियों की सौदेबाजी नहीं करा सकता था। इस दृष्टि से दोनों देशों के मध्य शीतयुद्ध की अवधि में निम्नलिखित रूप में सम्बन्ध रहे ।


1. सहयोग के आधार– 

नेहरू जी के समय में अनेक समस्याओं पर भारत और अमेरिका में मतभेद के होते हुए, भी कुछ क्षेत्रों में पर्याप्त सहयोग के आधार उपस्थित रहे। इस प्रकार दोनों देशों के नागरिकों के मध्य सम्पर्क सूत्र जुड़े रहे। भारत से हजारों की संख्या में नागरिक अमेरिका में अच्छे कार्य की खोज, वैज्ञानिक अन्वेषण तथा प्रशिक्षण के लिए गए। कुछ नागरिक व्यापार तथा पर्यटन के लिए भी अमेरिका जाते रहे हैं। अमेरिका के नागरिक भी भारत आते रहे हैं। इस प्रकार अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों में अमरीकी विषयों का अध्ययन प्रारम्भ किया गया। अमेरिका के  विश्वविद्यालयों में भी भारतीय विषयों का अध्ययन-अध्यापन प्रारम्भ हुआ।



2. साम्यवाद तथा लोकतन्त्र के संघर्ष में तटस्थता:- 

सन 1956 में स्वेज नहर के संकट के समय अमेरिका ने जिस नीति को अपनाया था, भारत ने उसका समर्थन किया। नेहरू जी 1956 ई० में अमेरिका गए। उसके पश्चात् 1959 ई० में अमरीकी राष्ट्रपति आइजनहावर भारत यात्रा पर आए। भारतीय जनता ने उनका  हार्दिक स्वागत किया। भारत तथा अमेरिका के बीच मई 1960 ई० में चार वर्ष के लिए पी० एल० 480 नामक उसके अन्तर्गत अमेरिका ने भारत को खाद्यान्न भेजने का वचन दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति जान एफ का ने भारत के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों को आगे बढ़ाया। यह काल भारत-अमरीकी मैत्री का स्वर्ण युग  था।



 3.तकनीकी क्षेत्र मे सहयोग–

अमेरिका तथा भारत के बीच 7 दिसम्बर, 1964 ई0 का एक समझाता हुआ, जिसके अनुसार अमेरिका ने भारत को तारापुर में आण्विक शक्ति का संयन्त्र स्थापित करने के लिए 8करोड डालर  दिए । इस वर्ष भारत तथा अमेरिका के वायु सैनिकों ने मिलकर शेक्षणिक अभ्यास किए। 1964 ई० में भारत में खाद्यान्न संकट आया तो अमेरिका ने बड़ी मात्रा में खाद्यान्न पूर्ति का।
India-US-Soviet foreign policy in hindi
India-US-Soviet foreign policy in hindi 


4. भारत-पाक युद्ध (1965 ई० ) के कारण तनाव की राजनीति– 

सन् 1965 में भारत-पाक युद्ध कीअवाधि मे  पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अमरीकी शस्त्रास्त्रों के प्रयोग के फलस्वरूप 'भारत-अमरीकी सम्बन्ध में कुछ तनाव तथा उग्नता उत्पन्न हुई। इस युद्ध काल में अमेरिका भारत से नाराज रहा। अमेरिका ने पाकिस्तान की कार्यवाही की आलोचना भी नहीं की, जबकि पाकिस्तान ने अमेरिका के दिए हुए हथियारों (पैटन टैंक आदि) का प्रयोग भारत के विरुद्ध खुलकर किया था।



5. सुधार की दृष्टि से सम्बन्धों की स्थिति-

लालबहादुर शास्त्री के पश्चात् श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा उनके बाद के प्रधानमन्त्रियों के काल में भारत तथा अमरीकी सम्बन्धों में पर्याप्त सुधार आया। दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों  तथा शासनाध्यक्षों  ने एक-दूसरे के देश में यात्राएँ की जिससे कि अनुकूल परिणाम निकले। भारत-पाक युद्ध के कारण अमेरिका ने भारत की जो आर्थिक सहायता बन्द कर दी थी। पुनः प्रारम्भ की 1971 ई० में बंगलादेश संकट एवं भारत-पाक युद्ध में अमेरिका की भूमिका विचित्र रहीं। 

भारत ने अमेरिका को यह समझाने में सफलता प्राप्त की कि पाकिस्तान दोषी हैं। सन् 1974 में अमेरिका ने हिन्द महासागर के एक छोटे-से द्वीप डियगो गार्सिया में आधुनिक नौसैनिक अड्डा बनाना चाहा। इससे भारत की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया और भारत-अमरीकी सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न हो गई। मई 1974 ई० में भारत ने पोखरण में आण्विक परीक्षण किया और अणु-शक्ति-सम्पन्न राष्ट्रों के क्लब में सम्मिलित हो गया। 

अमेरिका ने इसके विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त की। 1975 ई० में अमेरिका ने पाकिस्तान को मिसाइल्स बमवर्षक विमान तथा अन्य शस्त्रास्त्र देने का विचार किया, जिसके कारण भारत में अमेरिका के प्रति गलत सन्देश प्रसारित हुआ। सन् 1983 ई० में भारत तथा अमेरिका संयुक्त आयोग  की बैठक हुई जिसमें पारस्परिक सहयोग के विस्तार से विचार हुआ।




 शीतयुद्ध के दौरान भारत-सोवियत संघ की विदेश नीति :-


 भारत सोवियत संघ सम्बन्धों में अनेक उतार-चढ़ाव रहे हैं। उपनिवेशवाद, प्रजातीय भेदभाव, नि:शस्त्रीकरण आदि अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के विभिन्न प्रश्नों पर भारत और सोवियत संघ का समान दृष्टिकोण रहा है। इसी भावना की पृष्ठभूमि में भारत सोवियत संघ से मित्रता का इच्छुक रहा।

बंगलादेश की समस्या तथा भारत:- 

सोवियत संघ सम्बन्ध सोवियत संघ से भारत के मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध सुदृढ़ बनाने का अवसर 1971 ई० में बगलादेश की समस्या के समय सामने आया। सोवियत संघ ने भारत के दृष्टिकोण को गम्भीरतापूर्वक अध्ययन किया और 9 अगस्त, 1971 ई० को भारत और सोवियत संघ के बीच 20 वर्षीय सन्धि सम्पन्न हुई। यह सन्धि दोनों देशों के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। इस सन्धि का तात्कालिक लाभ 1971 ई० के भारत-पाक युद्ध में देखने को मिला पाकिस्तान 1971 के युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ।  पूर्वी पाकिस्तान एक नए राष्ट्र बंगलादेश के नाम से उदित हुआ तथा 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य होना पड़ा। विश्व इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में युद्ध बन्दी बनाया जाना।  भारतीय जवानों की शौर्यगाथा का स्वर्णिम अध्याय है। इस घटना से विश्व के रंगमंच पर भारत की प्रतिष्ठा में पर्याप्त वृद्धि हुई।
शीतयुद्ध के दौरान भारत की विदेश नीती
 Cold-world-war


आर्थिक स्थिति के क्षेत्र में सोवियत संघ का योगदान :-            

सोवियत संघ ने भारत की आर्थिक स्थिति सुधारने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत और सोवियत संघ के आर्थिक सहयोग का अवलोकन करने से विदित होता है, कि आत्म-निर्भर बनाने के लिए सोवियत संघ-भारत सहयोग का प्रारम्भ बहुत कम आर्थिक सहायता से हुआ था। 1970-71 ई० में सोवियत संघ ने भारत को 300 करोड़ की सहायता दी। भारत में 1973 ई० में ब्रेझनेव प्रवास के समय सोवियत संघ ने भारत को वैज्ञानिक, तकनीकी तथा औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्रों में सहयोग देने सम्बन्धी समझौते पर हस्ताक्षर किए। सोवियत संघ और भारत के मध्य 15 वर्षीय सन्धि पर भा हस्ताक्षर हुए। इस सन्धि में व्यापार में सहयोग को और अधिक विकसित करने  में प्रस्ताव था। सोवियत संघ ने भारतीय रक्षा सेनाओं  के तीनों अंगों के आधुनिकीकरण में भी सहायता दी।।


सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् भारत-रूस सम्बन्ध–    

सोवियत संघ तथा भारत के सम्बन्ध काफी मित्रतापूर्ण रहे हैं। यद्यपि दिसम्बर 1991 ई० में सोवियत संघ का विघटन हो चुका है। तथापि अब रूस, सोवियत संघ का राजनीतिक उत्तराधिकारी है, से भी भारत के उसी प्रकार के मधुर सम्बन्ध हो जस कि सोवियत संघ से थे।






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